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देश की जनता को मुबारक हो, महंगाई आसमान के ऊपर बैठ गयी , अब तो वहां से उसके नीचे उतरने के आसार बहुत ही कम या कहें नगण्य हैं, वोह आसमान पर बैठी जनता को मुंह चिढा रही है , आओ हिम्मत है तो मुझे नीचे उतारो, वर्ना मैं तो चली बादलों के पार , मैं तो गरीबों की रोटी के पंख लगा कर उड़ चली हूँ, मेरा पीछा करना बेकार है , मैं तो नेताओं के आँगन में पल बढ़ रही हूँ, वहीँ जनम लेती हूँ , वाही पलती हूँ और जवा होते ही आकाश की सैर पर चली जाती हूँ, तुम मेरे नीचे उतरने के लिए अगले बजट का इंतज़ार करते रहते हो और मैं हवा से बातें करती रहती हूँ, अब तुम ही बताओ खुली हवा में सफ़र करने वाला जमी पर क्यों आना चाहेगा भला, इसीलिए मैं नेताओं की गोद में बैठा करती हूँ, और जब उनका जी चाहता है आकाश में चली जाती हूँ, तुम तो आम आदमी हो आम ही खा सकते हो, तुम्हे क्या मालूम मैं किसके हाथ की सफाई हूँ, ये नेता भी बड़े ज़ालिम हैं पहले से सब कुछ तय करके बैठे होते हैं , मीडिया के मार्फ़त पहले माहौल बनाते हैं और अपने हाथ की सफाई दिखाते हुए मुझे आकाश में उड़ा देते हैं, फिर कहते है देश के विकास का सवाल है, इसलिए महंगाई आकाश में चली गयी है, अगर वो ज़मीन पर रहेगी तो हम और देशों से पीछे रह जायेंगे , अब आप ही तय करिए तभी उसको वापस बुलाएँगे , मैं महंगाई जनता से क्षमा मांगती हूँ , क्योंकि मेरी डोर इन जालिमों के हाथ में है, तोड़ दी तो हमेशा के लिए आसमान में चली जाऊँगी, और खींच ली तो इनके आँगन की हो कर रह जाऊँगी, हे जनता मुझे क्षमा करो और मुझे इनके चंगुल से मुक्त कराओ.
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